मौत और ज़िंदगी...यह कैसा खेल है कुदरत का..कोई इस के खौफ से परेशां है तो कही कोई इस को
खुद ही गले लगाने को बेताब है...साँसे लेने की भीख मांग रहा है कही कोई मालिक से तो कोई मालिक
को खुद ही अपनी साँसे देना चाहता है..परेशान दोनों है,क्या मोल मौत का इतना जयदा है..अजूबा है
यह ज़िंदगी भी और मौत भी...कोई जीना चाहता है तो कोई ज़िंदगी को छोड़ देना चाहता है..कोई लिख
जाता है जाते-जाते अपनी मौत की वजह पन्नो पे तो कोई ज़िंदगी पा कर ख़ुशी से पन्नो को मुबारकबाद
लिखता है...
खुद ही गले लगाने को बेताब है...साँसे लेने की भीख मांग रहा है कही कोई मालिक से तो कोई मालिक
को खुद ही अपनी साँसे देना चाहता है..परेशान दोनों है,क्या मोल मौत का इतना जयदा है..अजूबा है
यह ज़िंदगी भी और मौत भी...कोई जीना चाहता है तो कोई ज़िंदगी को छोड़ देना चाहता है..कोई लिख
जाता है जाते-जाते अपनी मौत की वजह पन्नो पे तो कोई ज़िंदगी पा कर ख़ुशी से पन्नो को मुबारकबाद
लिखता है...