Friday 1 May 2020

मौत और ज़िंदगी...यह कैसा खेल है कुदरत का..कोई इस के खौफ से परेशां है तो कही कोई इस को

खुद ही गले लगाने को बेताब है...साँसे लेने की भीख मांग रहा है कही कोई मालिक से तो कोई मालिक

को खुद ही अपनी साँसे देना चाहता है..परेशान दोनों है,क्या मोल मौत का इतना जयदा है..अजूबा है

यह ज़िंदगी भी और मौत भी...कोई जीना चाहता है तो कोई ज़िंदगी को छोड़ देना चाहता है..कोई लिख

जाता है जाते-जाते अपनी मौत की वजह पन्नो पे तो कोई ज़िंदगी पा कर ख़ुशी से पन्नो को मुबारकबाद

लिखता है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...