Friday 22 May 2020

 वो दूर से चलती आ रही थी लहर..पूछा,तलाश तुम्हे किस की है...सुनते नाम तलाश का,लहर का दर्द

बाहर आया..किस ने तुम को दर्द दिया,सुन बात मेरी, दर्द तुम्हारा क्यों बाहर आया..लम्बी ख़ामोशी के

बाद,व्यथा उस की जो सुनी..मन उदास हो आया. ''यहाँ के लोग/इंसान बहुत ही मैले है..जितनी साफ़

हू मैं उस से जयदा इन का ज़मीर बेहद मैला है..''  हम ने कहा,सुन ना जरा..इंसान अब कैद है खुद के

बनाए पिंजरे मे,बाहर आना लम्बे अरसे तक नामुमकिन है..तू बहती रह खुद की मर्ज़ी से,जब तक वो

आज़ाद होगा तब तल्क़ तुम खिल-खिल जाओ गी..हम दुआ करे गे ऊपरवाले से,वो आज़ाद होने से

पहले खुद के गुनाहो को धो ले..कदर होगी तभी तेरी,बस इंतज़ार कुछ और कर ले..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...