पराकाष्ठा प्रेम की इस से ऊपर क्या होगी कि वो अपने प्रियतम मे ही,अपना अराध्या ढूंढ़ती रही..वो
बेशक राधा जैसी ना थी,पर राधा के जैसे प्रेम का बंधन शिद्दत से निभाती रही..बिन बताए बिन जताए.
वो धर्म अपना चुपके से निभाती रही..वो शिव भी रहा उस का,वो गौरी बन उस के विष को अमृत मानती
रही...रूप राम का भी देखा इसी प्रियतम मे उस ने, और सीता सा सोलाना रूप लिए धरा मे समा जाने
को तैयार रही..यह कौन सा अनजाना अनदेखा बंधन रहा,जिस का कोई नाम ना था..अनंतकाल का था
या सदियों का..यह भी तो ज्ञात ना था..ख़ामोशी के इस बंधन मे शिकायत का इतना सा दौर था..वो
डूबती रही इबादत मे उस की और वो उस को कभी समझ ही ना सका..
बेशक राधा जैसी ना थी,पर राधा के जैसे प्रेम का बंधन शिद्दत से निभाती रही..बिन बताए बिन जताए.
वो धर्म अपना चुपके से निभाती रही..वो शिव भी रहा उस का,वो गौरी बन उस के विष को अमृत मानती
रही...रूप राम का भी देखा इसी प्रियतम मे उस ने, और सीता सा सोलाना रूप लिए धरा मे समा जाने
को तैयार रही..यह कौन सा अनजाना अनदेखा बंधन रहा,जिस का कोई नाम ना था..अनंतकाल का था
या सदियों का..यह भी तो ज्ञात ना था..ख़ामोशी के इस बंधन मे शिकायत का इतना सा दौर था..वो
डूबती रही इबादत मे उस की और वो उस को कभी समझ ही ना सका..