दर्द बेइंतिहा देने लगा है अब यह मौत का कहर..मुर्दा जिस्मों का यह डरावना मंज़र,सहने की हद से
है परे...क्यों तबाही रूकती नहीं..क्यों तूफ़ान यह थमता नहीं..अब तो सब देख के रूह भी काँप रही..
तुम ही कहते हो,एक माँ की पुकार तेरे दर तक बहुत जल्द पहुँचती है..तो अब तो सुन ले इस माँ की
रूह की पुकार...बस कर,रोक दे इस कहर को..बचा ले अपनी दुनियाँ को,कर कोई करिश्मा..तेरे लिए
नामुमकिन कुछ भी तो नहीं..कुछ भी तो नहीं...
है परे...क्यों तबाही रूकती नहीं..क्यों तूफ़ान यह थमता नहीं..अब तो सब देख के रूह भी काँप रही..
तुम ही कहते हो,एक माँ की पुकार तेरे दर तक बहुत जल्द पहुँचती है..तो अब तो सुन ले इस माँ की
रूह की पुकार...बस कर,रोक दे इस कहर को..बचा ले अपनी दुनियाँ को,कर कोई करिश्मा..तेरे लिए
नामुमकिन कुछ भी तो नहीं..कुछ भी तो नहीं...