Friday 1 May 2020

 तेरी रज़ा से जब पत्ता एक नहीं हिलता तो हम ने कैसे चाहा कि खुद की मर्ज़ी से सब कर ले..खुद की

ही साँसों का हिसाब नहीं रख सकते तो और क्या कर सकते है..एक माटी के पुतले है जो खुद को ही

सहेज नहीं सकते तो दूसरों का क्या कर सकते है..अहंकार से परे है क्या हम मे,बस खुद को कभी

कभी गलती से महान समझ लेते है..रज़ा तेरी हो तभी तो अगली सांस ले पाते है..खुद की गलतियों से

कब कहां कुछ सीख पाते है,तभी तो रोज़ कोई ना कोई गलती कर इंसान ही कहलाते है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...