तेरी रज़ा से जब पत्ता एक नहीं हिलता तो हम ने कैसे चाहा कि खुद की मर्ज़ी से सब कर ले..खुद की
ही साँसों का हिसाब नहीं रख सकते तो और क्या कर सकते है..एक माटी के पुतले है जो खुद को ही
सहेज नहीं सकते तो दूसरों का क्या कर सकते है..अहंकार से परे है क्या हम मे,बस खुद को कभी
कभी गलती से महान समझ लेते है..रज़ा तेरी हो तभी तो अगली सांस ले पाते है..खुद की गलतियों से
कब कहां कुछ सीख पाते है,तभी तो रोज़ कोई ना कोई गलती कर इंसान ही कहलाते है...
ही साँसों का हिसाब नहीं रख सकते तो और क्या कर सकते है..एक माटी के पुतले है जो खुद को ही
सहेज नहीं सकते तो दूसरों का क्या कर सकते है..अहंकार से परे है क्या हम मे,बस खुद को कभी
कभी गलती से महान समझ लेते है..रज़ा तेरी हो तभी तो अगली सांस ले पाते है..खुद की गलतियों से
कब कहां कुछ सीख पाते है,तभी तो रोज़ कोई ना कोई गलती कर इंसान ही कहलाते है...