समंदर की लहरों मे पांव जमाए बैठे है..आती-जाती लहरों से बातें करते है...पूछ रहे है तेरा यह समंदर
पागल क्यों है..इतना खारा है,फिर भी गुमान मे क्यों है...खुद मे समाए है बेशक हज़ारो मोती-मनके..
पर गरूर इतना कि भूल चूका कि तू खारा है कितना...गंगा जैसा जल तेरे पास नहीं,यमुना जैसा पावन
भी नहीं..अपने दायरे से निकल कर देख,कोई तेरे साथ ताउम्र रहने को तैयार नहीं..लहरों का संग तेरे
जीना मज़बूरी है..एक हम है जो पांव जमाए बैठे है..हम को इन लहरों जैसा ना समझना,जीना संग तेरे
इन की मज़बूरी है..याद रख,तेरे वज़ूद से टकराना सिर्फ हमी को आता है..बने है उस माटी के,जो खारे
को मीठा कर जाए गे..बेशक इतना खारा जल पी कर दफ़न क्यों ना हो जाए गे...
पागल क्यों है..इतना खारा है,फिर भी गुमान मे क्यों है...खुद मे समाए है बेशक हज़ारो मोती-मनके..
पर गरूर इतना कि भूल चूका कि तू खारा है कितना...गंगा जैसा जल तेरे पास नहीं,यमुना जैसा पावन
भी नहीं..अपने दायरे से निकल कर देख,कोई तेरे साथ ताउम्र रहने को तैयार नहीं..लहरों का संग तेरे
जीना मज़बूरी है..एक हम है जो पांव जमाए बैठे है..हम को इन लहरों जैसा ना समझना,जीना संग तेरे
इन की मज़बूरी है..याद रख,तेरे वज़ूद से टकराना सिर्फ हमी को आता है..बने है उस माटी के,जो खारे
को मीठा कर जाए गे..बेशक इतना खारा जल पी कर दफ़न क्यों ना हो जाए गे...