Saturday 9 May 2020

'' माँ पे एक खूबसूरत सी कविता ''

सब कुछ मुझ से सीख के जाना..अपने घर की लाज निभाना..
मेरी नन्ही लाडो,माँ-बाबा के दिए संस्कार निभा देना..
खामोश रहना,खुद के मुख पर ताला रखना..
यह कह कर विदा किया बाबा-माँ ने मुझ को......
फिर इक माँ का मिलना..उस के दहलीज़ की रौनक बनना...
इस घर की हर रीत निभाना,जुबां हमेशा अपनी काबू मे रखना...
अल्हड़ उम्र की इक छोटी सी बाला,इस माँ की सीख समझने को आतुर...
नया घर नए दस्तूर,गुस्से की अनोखी भाषा...
माँ की डांट सुन कर आँखों का नीर झट से बह जाता...
माँ प्यार से फिर समझती,कैसे सीखो गी नए घर की नई रीत...
मासूम सी बाला फिर हंस लेती,पा कर माँ का प्यार अनमोल...
बाबा-माँ की हर बात को सीने मे रखती,किसी के आगे मुँह ना खोलती...
धीमे-धीमे माँ को भाई,इतना भाई..मन की हर बात माँ ने उस को बताई...
सब कुछ सीखा,नए घर की हर रीत और प्रीत निभाई...
माँ ने जीवन का हर पाठ सिखाया,बाला से इक परिपक्क स्त्री बनाया..
माँ के पास समय जो कम था,मौत का दरवाजा बस खुलने को था..
पर डांट अभी भी ज़िंदा थी,कुछ कमी शायद अभी भी मुझ मे थी..
उम्र छोटी पर अनुभव सारे सिखा दिए माँ ने मुझ को...
उन आँखों मे बहुत कुछ था ऐसा,जो मुझ को अंदर तक हिला गया..
माँ की ममता का आंचल बस फिर छूट गया...
अश्रु-धारा काबू मे ना थी,यह मेरी कौन सी माँ थी..
जन्म नहीं दिया,पर मेरी सर्वशास्त्र ज्ञाता थी..
संस्कारो से,अनुभवों से भर दी झोली सारी मेरी..
माँ तेरा इतनी जल्दी जाना,मुझे रुला रुला गया..
न अब है जन्म-दाता मेरी,ना है कर्म दाता मेरी...
दोनों के संस्कारो से भरी हुई है झोली मेरी...
प्यार मिला इतना,तभी तो मिलने आती हो...
सिखा दिया है इतना कुछ कि अब संसार को बांटना बाकी है..
तुझे कितना याद करे,कितना याद करे..
जीवन-यात्रा तेरे बिना आज भी अधूरी है....
  माँ...माँ.....तुम्हे प्रणाम.........

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...