Friday 15 May 2020

घूँघट की आड़ मे रहना,घूंघट से ही निहारना..तो क्या हम पर्दानशीं हो गए..घूंघट से ढके,इसी के तहत

गुफ्तगू के चर्चे भी हुए तो क्या हम महजबीं हो गए..पहनी पायल-पाजेब पैरों मे,पर उन को भी छुपा

लिया घाघरे की ओट मे तो जाना, क्या हम पुराने ज़माने के हो गए..गेसुओं को संवारा मगर ओढ़नी के

भार से वो बहक-बहक गए तो क्या सनम,हम चितचोर बन गए..यह कजरा डाला जो इन अँखियो मे,

और दिन मे बादल घनेरे छा गए..अब कहे ज़माना हम,जादूगर हो गए..अब बोलिए जानम,हम क्यों

इतने कसूरवार हो गए..जो किया तेरे लिए किया,फिर नज़र मे तेरी भी क्यों हम गुनहगार हो गए..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...