Thursday 7 May 2020

सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ...से हम कितनो से रूबरू हुए..कितने दोस्त बने,कितने दोस्तों से बिछुड़ गए..

सरगोशियां,से हम को कितनो ने जाना..हम मशहूर हुए..हमारे लिखे लफ्ज़ो को हज़ारो ने पढ़ा..कितनो

ने सराहा और ना जाने कितनो की दुआओ मे आ गए..खुशनसीब इतने रहे,किसी ने नफरत से नहीं देखा

और हम बहुतो के चहेते ही बने..किसी ने लफ्ज़ो को जोड़ा जब-जब हमारी ज़िंदगी के पन्नो से,हम उन से

खफा भी हुए..पर फिर भी रहे इतने खुशनसीब,वो सभी लौट के हमारी सरगोशियां के पन्नो पे आए..यह

साँसे शायद किसी भी पल दगा दे ना जाए,हम बार-बार हज़ारो बार इन्ही पन्नो पे लौट आए..ज़िंदगी तो

अब भरोसे लायक रही नहीं इसलिए आप सभी से लफ्ज़ो के ज़रिए गुफ्तगू करते रहे..दोस्तों..तागीद

करते है और गुजारिश भी..ज़िंदा रहे तो भी ना रहे तो भी...आप सभी के दिलो मे दुआ बन के रहे..

यह क़यामत कब छीन ले,क्या कहे..पर बहुत खुश है कि हम ने सरगोशियां के आंचल मे इतने दोस्तों

का बेशकीमती साथ पाया है.....धन्यवाद....आभार...शुक्रिया ...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...