Saturday, 30 May 2020

तुम हो कांच का वो ताजमहल,जिस मे इक शहजादा सदियों से रहता है..कहता है खुद को शहंशाह और

तुम को मुमताज़ बताता है...यक़ीनन,इस कांच के ताजमहल मे दोनों आज भी ज़िंदा है...संगेमरमर का

वो ताजमहल हो या कांच का यह ताजमहल,क्या फर्क पड़ता है..मुहब्बत की पाकीज़गी को इस से क्या

वास्ता है..तू शहंशाह मेरी रूह का है..मैं हू वो मुमताज़ जिस के लिए मुहब्बत किताबो मे ज़िंदा आज भी

है...सदिया बीत गई कितनी,कितनी और बीत जाए गी..मुमताज़-शहंशाह की मुहब्बत ज़िंदा तब भी थी

वो ज़िंदा आज भी है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...