Sunday 17 May 2020

चलना शुरू किया तो लगा मंज़िल बहुत सुहानी है..यह रास्ते है इतने खूबसूरत कि इन पे चलना बहुत

सुहाना है..कंकर-पत्थर तो बहुत थे और धूप की तेज़ी हद से जयदा है..डर-डर के क्या चलना जब साथ

हिम्मत का पास है...मगर वो रास्ता आगे-आगे कठिन बेहद कठिन होता गया..इतना कठिन कि चलना

ही मुश्किल हो गया..पाँव छिले इतना छिले कि लहू को संभालना तौबा हो गया..ढूंढे किसे कि यहाँ तो

परिंदो का बसेरा तक नहीं..इरादा तो यह तय किया,क्यों ना परिंदो का बसेरा अपनी मंज़िल मे तय कर

लिया जाए..यह बहुत मासूम है क्यों ना इन को ही मंज़िल चुना जाए...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...