Friday 15 May 2020

बात को घुमा देना...कभी बात को छुपा देना..साफ़-साफ़ कुछ भी ना कहना..फितरत बदलती कहां

है..दुनियां की शायद रीत ही यही है..तभी तो इस दुनियां से शिकायत भी हम को बहुत है...गांठे ना

खोलना,खुद ही खुद से उलझना..बेबाकी से बोलना गर तबियत मे शामिल होता,ईमानदारी को हर

पल साथ रखा होता तो शायद हम को दुनियां का रवैया पसंद भी आ गया होता...मन मे कुछ,लबों पे

कुछ..ज़मीर मे कुछ..भगवान् ने तो इंसा को बनाया था पाक-साफ़,मैला होना तो खुद इंसा की मंशा

रही इसलिए तो यह दुनियां पसंद नहीं आई...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...