राधा या धारा..अर्थ दोनों का एक ही है..राधा जिस का प्रेम बहा, नदिया की धारा की तरह..प्रेम जो सच
मे निश्छल था मासूम था,किसी नन्ही खिलती पंखुड़ी की तरह..राधा तो वो धारा है जो बह गई उस पवित्र
जल की तरह जो पाक भी उतना रहा,जितना राधा का प्रेम रहा..परीक्षा फिर हुई प्रेम और अभिमान की,
तपती हुई दिल की धरती जो प्रेम के महीन धागों से ख़ामोशी मे तब्दील हुई...आंसू जो मोती बन के बहे..
कदम जो इबादत मे चूर दूर तक चले...साबित फिर हुआ,प्रेम राधा का अभिमान से परे इक देवालय
था..जहां खुद दुनियां झुकी यह वो पवित्र देव-स्थल था...कुछ परिभाषा प्रेम की बदली नहीं जाती,क्यों
कि जैसे राधा की धारा बदली नहीं जाती...
मे निश्छल था मासूम था,किसी नन्ही खिलती पंखुड़ी की तरह..राधा तो वो धारा है जो बह गई उस पवित्र
जल की तरह जो पाक भी उतना रहा,जितना राधा का प्रेम रहा..परीक्षा फिर हुई प्रेम और अभिमान की,
तपती हुई दिल की धरती जो प्रेम के महीन धागों से ख़ामोशी मे तब्दील हुई...आंसू जो मोती बन के बहे..
कदम जो इबादत मे चूर दूर तक चले...साबित फिर हुआ,प्रेम राधा का अभिमान से परे इक देवालय
था..जहां खुद दुनियां झुकी यह वो पवित्र देव-स्थल था...कुछ परिभाषा प्रेम की बदली नहीं जाती,क्यों
कि जैसे राधा की धारा बदली नहीं जाती...