माँ जिस को याद करने का कोई दिन नहीं होता..माँ जिस को भुलाने का कोई वक़्त नहीं होता..माँ जो
जन्म देती है..माँ जो फिर दूजे रूप मे आती है...माँ सिर्फ और सिर्फ माँ होती है,वो कभी अच्छी बुरी नहीं
होती..माँ जो संस्कार देती है,हम निभाए यह खुद की तबियत होती है..माँ जो दूर हो या बेहद नाराज़ भी
हो,मगर हर पल औलाद को सुख माँगा करती है..माँ जो मर कर भी सपनो मे अक्सर दिख जाती है..माँ
जो रो भी ले जी भर के,मगर आंसू सभी से छुपा लेती है..एक माँ ही तो है जो लफ्ज़ सिखाती है,मगर
ज़माना इन लफ्ज़ो को कहने-लिखने पे टोक लगा देता है..माँ जो बेखौफ अकेले भी हर फ़र्ज़ निभा देती
है..माँ तो माँ है...जो बरसो बाद भी,जाने के बाद भी..अपनी याद हम को दिला जाती है...
जन्म देती है..माँ जो फिर दूजे रूप मे आती है...माँ सिर्फ और सिर्फ माँ होती है,वो कभी अच्छी बुरी नहीं
होती..माँ जो संस्कार देती है,हम निभाए यह खुद की तबियत होती है..माँ जो दूर हो या बेहद नाराज़ भी
हो,मगर हर पल औलाद को सुख माँगा करती है..माँ जो मर कर भी सपनो मे अक्सर दिख जाती है..माँ
जो रो भी ले जी भर के,मगर आंसू सभी से छुपा लेती है..एक माँ ही तो है जो लफ्ज़ सिखाती है,मगर
ज़माना इन लफ्ज़ो को कहने-लिखने पे टोक लगा देता है..माँ जो बेखौफ अकेले भी हर फ़र्ज़ निभा देती
है..माँ तो माँ है...जो बरसो बाद भी,जाने के बाद भी..अपनी याद हम को दिला जाती है...