Wednesday 27 May 2020

बादलों की गड़गड़ाहट मे वो बिजली का कौंधना...कौंध के किसी के आशियाने पे पसर जाना..उस

कौंध से उस आशियाने का ख़ाक हो जाना..कसूर क्या था उस आशियाने का,कसूर क्या था उस का

जहां मे आने का...अंदर बहुत कुछ था ऐसा,जो बर्बाद हो गया..बिजली की कौंध कर गई तबाह उन

के वज़ूद को..ग़ुरबत से बुरा और क्या होगा..दर-दर भटकने के सिवा कौन अब इन का होगा...आहों

का असर दूर तक जाए गा..रुखसत यह तो हो जाए गे इस जहान से,पर क्या आहों का असर कम हो

पाए गा....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...