नारी कौन है...जिस ने अपनी कोख मे पुरुष को संजोया..नारी कौन है,जिस ने पुरुष को चलना-बोलना और
दुनियाँ मे रहना सिखाया..अपने आँचल की छाँव मे दुनियाँ का हर दस्तूर सिखाया..वो खुद भूखी रही,पर
उस को भर-पेट खिलाया...नारी...एक बेटी..एक पत्नी..एक प्रेमिका...एक शिक्षक..एक माँ...और भी ना
जाने कितने रूप लिए वो जीवन को जीती है..आंसुओ को रात-भर तकिये पे भिगो कर,सुबह खुली हंसी
से ज़िंदगी जीती है...पुरुष को स्त्री की इज़्ज़त करना,यही नारी-माँ ही तो सिखाती है..वो ना सीख पाए
तो भी दुनियाँ क्यों माँ को ही दोष देती है..वो नारी को बेइज़्ज़त करे,यह नारी-माँ कभी नहीं सिखाती है...
शायद दम्भ और अभिमान पुरुष मे भरा है इतना कि वो माँ की सिखाई बाते भूल जाता है...दोस्तों..
नारी को सम्मान जरा सा दो गे तो नारी-जाती को सम्मान ही दो गे ..गरूर से बाहर आओ,यह नारी
कुदरत की अनमोल कृति है...
दुनियाँ मे रहना सिखाया..अपने आँचल की छाँव मे दुनियाँ का हर दस्तूर सिखाया..वो खुद भूखी रही,पर
उस को भर-पेट खिलाया...नारी...एक बेटी..एक पत्नी..एक प्रेमिका...एक शिक्षक..एक माँ...और भी ना
जाने कितने रूप लिए वो जीवन को जीती है..आंसुओ को रात-भर तकिये पे भिगो कर,सुबह खुली हंसी
से ज़िंदगी जीती है...पुरुष को स्त्री की इज़्ज़त करना,यही नारी-माँ ही तो सिखाती है..वो ना सीख पाए
तो भी दुनियाँ क्यों माँ को ही दोष देती है..वो नारी को बेइज़्ज़त करे,यह नारी-माँ कभी नहीं सिखाती है...
शायद दम्भ और अभिमान पुरुष मे भरा है इतना कि वो माँ की सिखाई बाते भूल जाता है...दोस्तों..
नारी को सम्मान जरा सा दो गे तो नारी-जाती को सम्मान ही दो गे ..गरूर से बाहर आओ,यह नारी
कुदरत की अनमोल कृति है...