वल्लाह,यह भी कोई बात है...खवाबों की नगरी से परे खवाबों के एहसास मे है...वो सिर्फ एक बून्द
अश्क ही तो था जो मोती की तरह बेहद खूबसूरत था..मखमली डिबिया मे कैद एक सुहाना खवाब
ही तो था..बरसती रात मे वो चंद साँसों का मेहमान ही तो था..जीने के मकसद से परे वो आफताब का
चाँद भी था...बिख़र गई किरणें चारो और,यह हादसा भी कोई कम ना था...हादसे तो हज़ारो होते है,
मगर यह हादसा किसी करिश्मे से कम तो ना था..
अश्क ही तो था जो मोती की तरह बेहद खूबसूरत था..मखमली डिबिया मे कैद एक सुहाना खवाब
ही तो था..बरसती रात मे वो चंद साँसों का मेहमान ही तो था..जीने के मकसद से परे वो आफताब का
चाँद भी था...बिख़र गई किरणें चारो और,यह हादसा भी कोई कम ना था...हादसे तो हज़ारो होते है,
मगर यह हादसा किसी करिश्मे से कम तो ना था..