हार-जीत किस के लिए..सुबह की बेला मे कदम उठे सिर्फ, सभी की सलामती के लिए..साँसे सब की
चलती रहे,खुशियों के द्वार सब के लिए खुलते रहे..उदास हुए तो याद आया,माँ कहा करती थी..ज़िंदगी
टूट जाने का नाम नहीं..बाबा जो हिम्मत का पाठ सिखाते रहे..खुद की ख़ुशी से जयदा दूसरों का मान
रखते रहे..यह वक़्त भी शायद कुछ सीख देने ही आया है..दूरियां भी शायद फिर और पास आने के लिए
ही आई होगी..विश्वास के धागे कहां टूट सकते है..इसलिए तो परवरदिगार दुःख के बाद ही सुख दिया
करता है...वक़्त यह भी निकल जाए गा.........................................
चलती रहे,खुशियों के द्वार सब के लिए खुलते रहे..उदास हुए तो याद आया,माँ कहा करती थी..ज़िंदगी
टूट जाने का नाम नहीं..बाबा जो हिम्मत का पाठ सिखाते रहे..खुद की ख़ुशी से जयदा दूसरों का मान
रखते रहे..यह वक़्त भी शायद कुछ सीख देने ही आया है..दूरियां भी शायद फिर और पास आने के लिए
ही आई होगी..विश्वास के धागे कहां टूट सकते है..इसलिए तो परवरदिगार दुःख के बाद ही सुख दिया
करता है...वक़्त यह भी निकल जाए गा.........................................