Monday 18 May 2020

वो राख़ मे दबी कोई चिंगारी थी या बर्फ की शीतलता लिए कोई संगेमरमर की मूरत थी..या फिर कोई

बहुत गहरा तूफ़ान लिए,आँखों मे किसी अधूरे सपने का अरमान लिए..अब तक ना जाने क्यों ज़िंदा थी..

भटक रही थी ना जाने कितनी सदियों से,क्या अमानत किसी की तक़दीर की थी..खामोश रहते थे लब

उस के,मगर वो बातें खुद से हज़ारो करती थी..इतनी बड़ी दुनियां मे,सब के रहते वो क्यों बहुत अकेली

थी..परिंदो को उड़ा कर,उन्हें आज़ाद कर देना..यह उस की खासियत थी..खुद को जानने की कोशिश

मे,वो बहुत बार बेतहाशा रोई थी..किस से दर्द अपना कहती,हर किसी के हंसने से डरती थी..क्यों जन्म

दिया तुम ने मुझ को,अक्सर खुदा से पूछा करती थी..ज़िंदगी की खुशियों को तरसती वो एक भटकी

कोई आत्मा थी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...