Tuesday 19 May 2020

ज़िंदगी का यह फलसफा भी कितना खूबसूरत है..सामने मौत का डेरा है और तब भी बिंदास जीना है..

खबर खुद को ही है कि अब साँसों का बसेरा कितना है..चुन-चुन के उठा रहे है खुशियां,कही अब किसी

की नज़र ना इन को लगे..सबक मिला है अब, वो भी इसी ज़िंदगी से,कैसे कह दे कि अब मौत प्यारी

नहीं..चैन से सुला के फिर कोई सवाल तो नहीं पूछे गी..यह ज़िंदगी सवाल बहुत किया करती है...ना

कहो कुछ तो उलझा दिया करती है..चल आ..ज़िंदगी इस दफा तुझे ही उलझा देते है..जीते है तेरे

हिसाब से और मौत को चुपके से दावत दे देते है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...