ज़न्नत की तलाश करते-करते वो मायूस हो गया..खवाब टूटे और हौसला पशेमान हो गया..किस से कहे
ज़न्नत मिले गी कहाँ.. पत्थर के शहर और बेजान लोग,कौन है जो साथ दूर तक दे गा मेरा...फिर रूह के
तार झनझनाए और ज़न्नत का दरवाजा खुल गया...यह कौन सी ज़न्नत है,जो उस के खवाबो से कही ऊपर
थी...इक रौशनी दिखी और वो साथ उस के चल दिया..ज़न्नत का साथ चाहिए तो खुद को बदलना होगा..
खवाब पूरे चाहिए तो ज़न्नत की राह ही चलना होगा...हज़ूरे-आला,तू जो कहे सब मंजूर है..तेरे लिए यह
ज़िंदगी भी क़बूल है...तेरे साथ मेरे खवाब है..तेरे साथ मेरे दोनों जहान है...
ज़न्नत मिले गी कहाँ.. पत्थर के शहर और बेजान लोग,कौन है जो साथ दूर तक दे गा मेरा...फिर रूह के
तार झनझनाए और ज़न्नत का दरवाजा खुल गया...यह कौन सी ज़न्नत है,जो उस के खवाबो से कही ऊपर
थी...इक रौशनी दिखी और वो साथ उस के चल दिया..ज़न्नत का साथ चाहिए तो खुद को बदलना होगा..
खवाब पूरे चाहिए तो ज़न्नत की राह ही चलना होगा...हज़ूरे-आला,तू जो कहे सब मंजूर है..तेरे लिए यह
ज़िंदगी भी क़बूल है...तेरे साथ मेरे खवाब है..तेरे साथ मेरे दोनों जहान है...