हम ने दुआओं का खज़ाना दोनों हाथों से लुटा दिया..उन के लिए जिन्हो ने हम को सम्मान दिया..उन के
लिए भी जिन्हो ने हम को दुत्कार दिया..माँ हमेशा कहती थी,तुम खुद से सही हो तो सिर्फ दुआ ही देना..
सरल सहज हो तो किसी को दुःख ना देना..क्यों कि भगवान् की लाठी मे कभी आवाज़ नहीं होती..वो
जानता है गुनहगार को सज़ा देना..उस का तरीका देने-लेने का बहुत अनोखा है..तेरे आंसू भी देखता
है वो,कितने सच्चे है..इस का अंदाज़ा भी जानता है वो..बस भूलना नहीं...भगवान् की लाठी मे आवाज़
कभी नहीं होती...बस खुद को संस्कारो मे बांधे रखना...
लिए भी जिन्हो ने हम को दुत्कार दिया..माँ हमेशा कहती थी,तुम खुद से सही हो तो सिर्फ दुआ ही देना..
सरल सहज हो तो किसी को दुःख ना देना..क्यों कि भगवान् की लाठी मे कभी आवाज़ नहीं होती..वो
जानता है गुनहगार को सज़ा देना..उस का तरीका देने-लेने का बहुत अनोखा है..तेरे आंसू भी देखता
है वो,कितने सच्चे है..इस का अंदाज़ा भी जानता है वो..बस भूलना नहीं...भगवान् की लाठी मे आवाज़
कभी नहीं होती...बस खुद को संस्कारो मे बांधे रखना...