दुनियां मेरे वज़ूद को मेरी आँखों की नमी से पहचानती है...यह नमी आँसुओ की नहीं,यह हम को हमी
से जोड़ के रखती है..हम मुस्कुराए तो भी यह नमी कायम रहती है..उदास हो तो यह नमी गहरा जाती
है...पन्नों पे लिखते है तो स्याही पे और नमी दे जाती है..कभी मुहब्बत को बिखेरे तो यह हमारी आँखों मे
घुल जाती है..दुनियां पूछती है,क्यों रहती है नमी तुम्हारी आँखों मे...हम खिलखिलाए और बस इतना ही
कहा...''यह नमी हमारे इंसान होने का सबूत देती है''...........
से जोड़ के रखती है..हम मुस्कुराए तो भी यह नमी कायम रहती है..उदास हो तो यह नमी गहरा जाती
है...पन्नों पे लिखते है तो स्याही पे और नमी दे जाती है..कभी मुहब्बत को बिखेरे तो यह हमारी आँखों मे
घुल जाती है..दुनियां पूछती है,क्यों रहती है नमी तुम्हारी आँखों मे...हम खिलखिलाए और बस इतना ही
कहा...''यह नमी हमारे इंसान होने का सबूत देती है''...........