Friday 1 May 2020

आवाज़ खुद से खुद की आई और कुछ सपने पुराने आँखों मे कौंध गए...सम्भाल के रख दिया इन्हे

अलमारी के किसी खास बक्से मे,आखिर यह भी कभी अपने हुआ करते थे..वक़्त कब कैसे बदल

जाता है..यादों का बवंडर बहुत बहुत कुछ सिखा जाता है..जिस वक़्त को हम ने गले लगाया था कभी

बेहद प्यार से वो वक़्त अचानक रेत की तरह हाथ से हमारे फिसल गया...तक़दीर को दोष दे या अपने

सपनो को,जिन की उम्र थी इतनी छोटी कि हम खुल के जीना सीख़ पाते,यह हम से छिटक कर बहुत

दूर चले गए...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...