हज़ारो मे नहीं,लाखो मे नहीं..करोड़ो मे भी नहीं..वो तो खरबों मे ख़ास एक मसीहा था...घनेरे अंधेरो
और पथरीली राहो मे वो राह दिखाता इक जुगनू था..हम चलते रहे पीछे-पीछे उस के और वो साफ़
रास्ता दिखा हम को, ना जाने कहां गायब हो गया..एक बून्द अश्क निकला आंख से हमारे और वो झट
से हमारी ही आँखों मे रौशनी बन कैद हो गया...आंखे बंद रहे या खुली,हमारी इन आँखों का विश्वास है
वो..कौन कहता है,मसीहा इस दुनिया मे होते नहीं..हम ने जो देखा वो खवाब तो कतई ना था...
और पथरीली राहो मे वो राह दिखाता इक जुगनू था..हम चलते रहे पीछे-पीछे उस के और वो साफ़
रास्ता दिखा हम को, ना जाने कहां गायब हो गया..एक बून्द अश्क निकला आंख से हमारे और वो झट
से हमारी ही आँखों मे रौशनी बन कैद हो गया...आंखे बंद रहे या खुली,हमारी इन आँखों का विश्वास है
वो..कौन कहता है,मसीहा इस दुनिया मे होते नहीं..हम ने जो देखा वो खवाब तो कतई ना था...