Sunday 31 May 2020

शाम बेशक थकी-थकी सी रही..पर मौसम की मधुरता ने फिर से जीवन दे दिया...नन्ही सी ख़ुशी को

बड़े लम्हो मे तब्दील कर दिया...बहुत जी चाहा आज कि इन लम्हो को रोक ले,कभी खुद से जुदा होने

ना दे...पर लम्हे रोके से कब रुकते है..जाते हुए लम्हों से गुजारिश की हम ने,लौट के जल्दी आना...हम

इंतज़ार करे गे तुम्हारा..यह शाम यह साँझ ना जाने क्यों थका देती है..फिर मौसम की मधुरिमा कब बार

बार जीवन देती है..किस्मत से भी शिकायत क्या करे,मौसम से भी कब तक मधुर होने को कहे...लम्हे

जो गुजर गए उन के फिर आने की उम्मीद मे एक बार फिर से जिए...शायद ज़िंदगी इसी का नाम है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...