Friday 22 May 2020

आज कल हर दिन यह सोच कर जीते है...आज कल यह सोच कर खुश रहते है..आज कल हर काम

शिद्दत से करते है..कल क्या हमारा होगा ? या फिर यह जिस्म भी मुर्दा लाश होगा..शायद कोई रो के

विदा भी ना कर पाए गा..एक महकते जिस्म को कोई अनजान जला कर राख़ कर दे गा..खुद को

सजाते रहे,कभी संवारते रहे चेहरे को..पलों मे तब्दील हो जाए गा माटी मे,माटी भी ऐसी जिस को हाथ

लगाने से सब डर जाए गे..जी हां,यही हकीकत है..गुफ्तगू कब तक अपनों और दोस्तों से कर पाए गे..

अब इस सच को लिखना कोई जुर्म नहीं..कल मेरी माटी तो कुछ ना लिख पाए गी..इसलिए रोज़ शिद्दत

से जीते है..''सरगोशियां'' ज़िंदा रहे,इस की इबादत को हर सांस के साथ करते है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...