नींद से कह रहे है,चल आँखों के द्वार चले...पलकों का शामियाना बिछा और दिल को सकून का पता
बता...ज़िद्द करने की बारी अब किस की है,करवट बदलने से पहले यह राज़ अपनी रूह को बता...
जिस्म अगर सो भी जाए गा तो क्या दिमाग उस का साथ दे पाए गा..शायद हां शायद नहीं..सपनों के
ताने-बानों मे रूह का वज़ूद बिलकुल ही छिल जाए गा..यह बोलती भी कहां है,महसूस करने के लिए
अब इस के पास रह ही क्या गया है..मगर नींद तो फिर भी कह रही है,चल ना अब आँखों के द्वार चले..
बता...ज़िद्द करने की बारी अब किस की है,करवट बदलने से पहले यह राज़ अपनी रूह को बता...
जिस्म अगर सो भी जाए गा तो क्या दिमाग उस का साथ दे पाए गा..शायद हां शायद नहीं..सपनों के
ताने-बानों मे रूह का वज़ूद बिलकुल ही छिल जाए गा..यह बोलती भी कहां है,महसूस करने के लिए
अब इस के पास रह ही क्या गया है..मगर नींद तो फिर भी कह रही है,चल ना अब आँखों के द्वार चले..