बचपन..जिस की मिसाल कहां होगी..बचपन,जिस की पहचान इस जहां मे और कहां होगी..नन्हा मन
जिस मे मासूमियत के इलावा और कुछ भी नहीं..वो खिलखिलाती हंसी जो खिलती है बहते झरने की
तरह...ना कंकर ना पत्थर ना कोई चट्टान का दिल है इन मे..दौलत हो या सिक्का सोने का,यह तो बस
खेल के उन से उन्हें रख देते है..क्या जाने कि यह ज़माना इन सिक्को के लिए पागल है..यह बचपन जो
कुदरत का एक करिश्मा है...हम तलाशते रहे इंसानो मे फरिश्ता और यह बचपन खुद ही हम को इस
ज़न्नत तक ले आया...
जिस मे मासूमियत के इलावा और कुछ भी नहीं..वो खिलखिलाती हंसी जो खिलती है बहते झरने की
तरह...ना कंकर ना पत्थर ना कोई चट्टान का दिल है इन मे..दौलत हो या सिक्का सोने का,यह तो बस
खेल के उन से उन्हें रख देते है..क्या जाने कि यह ज़माना इन सिक्को के लिए पागल है..यह बचपन जो
कुदरत का एक करिश्मा है...हम तलाशते रहे इंसानो मे फरिश्ता और यह बचपन खुद ही हम को इस
ज़न्नत तक ले आया...