Sunday, 17 May 2020

बचपन..जिस की मिसाल कहां होगी..बचपन,जिस की पहचान इस जहां मे और कहां होगी..नन्हा मन

जिस मे मासूमियत के इलावा और कुछ भी नहीं..वो खिलखिलाती हंसी जो खिलती है बहते झरने की

तरह...ना कंकर ना पत्थर ना कोई चट्टान का दिल है इन मे..दौलत हो या सिक्का सोने का,यह तो बस

खेल के उन से उन्हें रख देते है..क्या जाने कि यह ज़माना इन सिक्को के लिए पागल है..यह बचपन जो

कुदरत का एक करिश्मा है...हम तलाशते रहे इंसानो मे फरिश्ता और यह बचपन खुद ही हम को इस

ज़न्नत तक ले आया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...