अचानक से यह साँसे क्यों हल्की सी लगने लगी है...शायद मौत का खौफ ख़तम हो गया है...डर तो अब
ज़िंदगी जीने से लगने लगा है..कितना खौफ है साँसे लेने के लिए..कितना खौफ है बाहर जाने के लिए..
कितना ही खौफ है अपनों से मिलने के लिए..घर मे ही खौफजदा है ज़िंदगी के लिए...बस एक निश्चय
लिया और साँसे हल्की हो गई..अकेले ही आए थे और जब अकेले ही जाना है तो आंखे क्यों भरनी...
बुरा जब किसी का किया नहीं,बुरा किसी का सोचा नहीं..तभी शायद यह सांस बेहद हल्की होने लगी है..
ज़िंदगी जीने से लगने लगा है..कितना खौफ है साँसे लेने के लिए..कितना खौफ है बाहर जाने के लिए..
कितना ही खौफ है अपनों से मिलने के लिए..घर मे ही खौफजदा है ज़िंदगी के लिए...बस एक निश्चय
लिया और साँसे हल्की हो गई..अकेले ही आए थे और जब अकेले ही जाना है तो आंखे क्यों भरनी...
बुरा जब किसी का किया नहीं,बुरा किसी का सोचा नहीं..तभी शायद यह सांस बेहद हल्की होने लगी है..