Wednesday 27 May 2020

यू ही चलते चलते...
कुछ प्यारी मुस्कुराहटें दिखी...
कुछ अजनबी बैगाने चेहरे दिखे...
कुछ प्यारे मासूम बंधन दिखे...
किलकारियां मारते अल्हड़ बचपन दिखे...
     फिर चले आगे तो हम को.....
मैले-कुचैले बच्चे दिखे...
भूख-प्यास से बैचैन चेहरे दिखे...
पास उन के ना थी किलकारियां...
सिर्फ पास थी उन के सिसकियां...
          कुछ और आगे चले........
उदास व्याकुल मसीहा दिखे...
पाल-पोस अपने बच्चो को,अब दोराहे पे अकेले खड़े...
आँखों का सूनापन और पलकों पे रुकी आंसुओ की बूंदे.....
ना जीने का मन,दिल मे मौत की हसरत लिए....
काश..कोई तो थाम ले आंचल इन का विश्वास से....
      आगे अब हम से चला जाता नहीं................
दिख रही है दूर से कुछ चिताए जलती हुई....
उदास है कुछ नए चेहरे,जिन का इन से नाता ना था...
देख यह इंसानियत बस हम रो पड़े.....
क्या ज़िंदगी इसी का नाम है,जिसे कहते है नियामत....
क्या कुदरत की मिली सही मायने मे यही पहचान है..............   ''शायरा''         सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...