जमीर और रूह से गिरते आंसुओ का फ़साना बहुत अलग होता है..यह गिरते है तभी जब कहर हद
से भी जयदा होता है..गलती से भी इन को मामूली ना समझ लेना,इन की आवाज़ सीधे उस मालिक
तक पहुँचती है..वजह बहुत खास हो तभी यह गिरते है..रूह ज़मीर कभी इतनी आसानी से बिलख-
बिलख कर रोया नहीं करते..एक मजबूर और मज़दूर के बिलखते ज़मीर के आंसू बहुत दर्द देते है..
रूहे जो रोती है वो आवाज़ नहीं करती,मगर उन की पहुंच सीधा मालिक के चरणों तक लगती है..
लोग अक्सर भूल जाते है या अनदेखा कर देते है यह आंसू और रूह की बेआवाज़ सिसकियां...यह
कसूरवार नहीं मगर फिर भी रूह ज़मीर की आवाज़ कोई सुन नहीं पाता.....
से भी जयदा होता है..गलती से भी इन को मामूली ना समझ लेना,इन की आवाज़ सीधे उस मालिक
तक पहुँचती है..वजह बहुत खास हो तभी यह गिरते है..रूह ज़मीर कभी इतनी आसानी से बिलख-
बिलख कर रोया नहीं करते..एक मजबूर और मज़दूर के बिलखते ज़मीर के आंसू बहुत दर्द देते है..
रूहे जो रोती है वो आवाज़ नहीं करती,मगर उन की पहुंच सीधा मालिक के चरणों तक लगती है..
लोग अक्सर भूल जाते है या अनदेखा कर देते है यह आंसू और रूह की बेआवाज़ सिसकियां...यह
कसूरवार नहीं मगर फिर भी रूह ज़मीर की आवाज़ कोई सुन नहीं पाता.....