Saturday 9 May 2020

शृंगार तो तब करते जब सादगी को ना चुना होता..आईना देखने की जरुरत बार-बार तब होती,जब खुद

की सूरत पे सिर्फ अपना ही अक्स होता...काजल को भरा सिर्फ इसलिए इन आँखों मे,रात को जल्द

बुलाने का गर इरादा ना होता...इतना सादा रूप रखा क्यों कर,जिस मे एक झलक गर अपनी माँ की

ना होती..रूप-सुंदरी जो माँ ने ना कहा होता तो शायद आज यह रूप-रंग इतना मनभावन ना होता..

जो माँ ने कहा गर वो सच ना होता तो शृंगार को साथ  ले ही लिया होता....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...