Saturday 23 May 2020

एक नन्ही सी परी बचपन की सौगातों से भरी..वो पहन कर फ्रॉक गुलाबी-गुलाबी,ज़न्नत की कोई

अप्सरा सी लगती थी..खिलौनों की दुनियाँ से परे,वो क़िताबों की दुनियाँ को समझती थी..हर अक्षर

को जानना और उस की गूढ़ अर्थ को समझना..यही नियति थी उस की..परिंदा हो या कोई भूख से

परेशां,अपने हिस्से का खाना वो उस को दे देती थी..देख उसे खुश इतना होती कि भूख अपनी भूल

जाती..कौन से देश से आई हो..यह सवाल तो वो भी ना जानती थी..उस को प्यार था गरीबों से,उस को

प्यार से हर मासूम परिंदे से..परियां बड़ी कहां होती है..वो तो अपने पंखो से जरुरतमंदो की करीब

होती है..भावना  किस की है कितनी पावन ,वो पहले से जान लेती है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...