Thursday, 30 April 2020

यह दर्दे-जंग सहना बहुत ही मुश्किल है..बंद कमरे मे रह कर जंग खुदी से लड़ना,कहाँ तक मुनासिब

है...कभी तड़प लेना तो कभी खुली हवाओं का इंतज़ार कर मायूस हो जाना...हर तरफ अँधेरा दिखना

और सवेरे की इंतज़ार मे बेहाल होना...फिर इक उम्मीद उसी परवरदिगार पे होना..जो देता है दुःख

की काली घटा,वो उस से निकालना भी जानता है..बस इस यकीन के साथ,उसी सवेरे का इंतज़ार सब

करना..इंसानो की यह दुनियाँ बुरी है बहुत ही बुरी..इस से अच्छा तो यह कहर है जिस की वजह तो है

पता...परवरदिगार का कोई फैसला गलत नहीं होता..हम झुके उस के आगे,आप सब भी बस शीश

नवा दीजिए..वो भगवान् है,इंसान नहीं जो सिर्फ दुःख-दर्द दे जाते है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...