Thursday 2 April 2020

जिस्म हज़ारो बेजान हो जाए,इस से पहले अपनी दया का सागर खोल दे मेरे दाता...फिर से लौटा दे

सब की खुशियाँ,गम के घोर बादल हटा दे मेरे दाता...जिस्मों से रूहे निकल कर कब वापिस आती है..

सुन रहा है ना तू...इन जिस्मों को रहने दे अभी और ज़िंदा कि सपने और अरमान सभी के बाकी होंगे...

कितने फ़र्ज़ निभाने बाक़ी है,कितने साथ जीने की खाव्हिश लिए तेरे सामने हाथ जोड़े बेबस और खाली

खाली है..हाथ जोड़ दुआ कर रहे तेरे आगे मालिक मेरे..अपनी नाराज़गी को हटा ले अब तो दिल से अपने..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...