Monday 20 April 2020

कैसे कहे कि दर्द जब भी सीमा के उस पार जाता है..रूह को जैसे छील जाता है..क़िताबों को पढ़े तो

दिल का कोना कहता है काश..सतयुग लौट आए..वो माटी की सुगंध लौट आए..वो सलोनी हवा फिर से

फिजाओं मे बिख़र जाए..परिशुद्ध प्रेम रिश्तो मे समा जाए..टूट के चाह लेना,राम-सीता कोई बन जाए..

फिर कोई राधा जन्म ले और अपने सलोने कृष्ण को समर्पित हो जाए..फिर से कोई गौरी बने और शिव

की अर्धाग्नि बन सतयुग का अर्थ बता जाए...ना कुछ लेने की चाह,बस प्रेम परिशुद्ध होता जाए...बस मे

हमारे कुछ भी नहीं,मगर दुआ करते है....सतयुग लौट आए...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...