भोर इतनी पावन मिली..क्या रात का आगाज़ उतना ही खूबसूरत होगा....कभी-कभी ही ऐसी हवाएं
उठाया करती है..उम्मीदों से परे सुबह होने का एहसास दिलाया करती है...सन्नाटे मे..गहन ख़ामोशी
मे..लबों को मुस्कुराने पे मजबूर कर देना...पांवो को जमीं पे उतारे या इन हाथों को सुबह की रौनक
के आगे ज़िंदा कर दे..इस रात को सुबह का नगीना समझे या चाँद के आने का इंतज़ार कर ले...
नियामतें किस को ऐसे मिला करती है,बेशक कभी-कभी...मगर मिला तो करती है...
उठाया करती है..उम्मीदों से परे सुबह होने का एहसास दिलाया करती है...सन्नाटे मे..गहन ख़ामोशी
मे..लबों को मुस्कुराने पे मजबूर कर देना...पांवो को जमीं पे उतारे या इन हाथों को सुबह की रौनक
के आगे ज़िंदा कर दे..इस रात को सुबह का नगीना समझे या चाँद के आने का इंतज़ार कर ले...
नियामतें किस को ऐसे मिला करती है,बेशक कभी-कभी...मगर मिला तो करती है...