Thursday 23 April 2020

वो रजनीगंधा के फूल थे या उड़नखटोले से उतरे फ़रिश्तो के पैगाम थे...कुछ सुने तो कुछ अनसुने,कुछ

समझ से परे गूढ़ विद्वान थे..हम समझते रहे अब तक कि हम इस धरा के मामूली इंसान है..खास बहुत

कहते रहे लोग मगर हम खुद की धुन मे किसी करिश्मे की इंतज़ार मे थे..फ़रिश्ते मिले ऐसे जो कहते रहे,

वो भी इस धरा के इंसान है..कैसे पूछे इन फ़रिश्तो से ,गर आप धरा के इंसान है तो हम कौन सी जमीं

के इंसान है..बस खुद से यही सोचा,हम सिर्फ इन तमाम फ़रिश्तो के कदमों तले जीने वाले इक जीव,इक

कण..इक अनुमान है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...