वो रजनीगंधा के फूल थे या उड़नखटोले से उतरे फ़रिश्तो के पैगाम थे...कुछ सुने तो कुछ अनसुने,कुछ
समझ से परे गूढ़ विद्वान थे..हम समझते रहे अब तक कि हम इस धरा के मामूली इंसान है..खास बहुत
कहते रहे लोग मगर हम खुद की धुन मे किसी करिश्मे की इंतज़ार मे थे..फ़रिश्ते मिले ऐसे जो कहते रहे,
वो भी इस धरा के इंसान है..कैसे पूछे इन फ़रिश्तो से ,गर आप धरा के इंसान है तो हम कौन सी जमीं
के इंसान है..बस खुद से यही सोचा,हम सिर्फ इन तमाम फ़रिश्तो के कदमों तले जीने वाले इक जीव,इक
कण..इक अनुमान है...
समझ से परे गूढ़ विद्वान थे..हम समझते रहे अब तक कि हम इस धरा के मामूली इंसान है..खास बहुत
कहते रहे लोग मगर हम खुद की धुन मे किसी करिश्मे की इंतज़ार मे थे..फ़रिश्ते मिले ऐसे जो कहते रहे,
वो भी इस धरा के इंसान है..कैसे पूछे इन फ़रिश्तो से ,गर आप धरा के इंसान है तो हम कौन सी जमीं
के इंसान है..बस खुद से यही सोचा,हम सिर्फ इन तमाम फ़रिश्तो के कदमों तले जीने वाले इक जीव,इक
कण..इक अनुमान है...