झांझर सुना चुकी अपना आदेश..कंगना सुना रहे अपनी दास्तान..करधनी को कोई लेना-देना नहीं रहा,
अब कोई सी सुबह और कौन सी शाम..पायल अब बक्से मे बंद है..कानो ने सुना और अनसुना कर दिया..
यह तो दुनियाँ की रीत है,दिलो से खेलना..जज्बातों को रौंदना..रूह ने कहाँ,जो मैंने कह दिया वो अब
दुबारा ना दोहराना है..दिल जो अब किसी की सुनता ही नहीं..ज़मीर जो लिख के दुबारा कुछ मिटाता ही
नहीं..इन साँसों को मंजूरी किसी से लेनी नहीं..आज़ाद है अपने हर फैसले के लिए......
अब कोई सी सुबह और कौन सी शाम..पायल अब बक्से मे बंद है..कानो ने सुना और अनसुना कर दिया..
यह तो दुनियाँ की रीत है,दिलो से खेलना..जज्बातों को रौंदना..रूह ने कहाँ,जो मैंने कह दिया वो अब
दुबारा ना दोहराना है..दिल जो अब किसी की सुनता ही नहीं..ज़मीर जो लिख के दुबारा कुछ मिटाता ही
नहीं..इन साँसों को मंजूरी किसी से लेनी नहीं..आज़ाद है अपने हर फैसले के लिए......