खुशनुमा फूल का अपनी पखुड़ियों को सुबह-साँझ यूँ बगीचे को समर्पित करना...वल्लाह,क्या नसीब
की बात है...अचानक से यू बगीचे पे फ़िदा होना,माशाअल्लाह खवाबों से हट कर इक खवाब है...
खुश है बहुत बगीचा कि उस का अंतर्मन सजने पे आया है..ज़ख्म भर रहो जैसे,खुदाई का गम जैसे
दूर जा रहा है..पर एक डर,क्या पता किसी रोज़ यह बहार पंखुड़ियों की बंद ना हो जाए..यह खूबसूरत
सा फूल किसी और बगीचे मे ना खिल जाए..मौसम को पहले भी बदलते देखा है,कुछ लफ्ज़ो को खुद पे
भारी होते भी देखा है..फिर भी बहार तो बहार है,साँझ की है या फिर सवेरे की..मगर बहार तो है..
की बात है...अचानक से यू बगीचे पे फ़िदा होना,माशाअल्लाह खवाबों से हट कर इक खवाब है...
खुश है बहुत बगीचा कि उस का अंतर्मन सजने पे आया है..ज़ख्म भर रहो जैसे,खुदाई का गम जैसे
दूर जा रहा है..पर एक डर,क्या पता किसी रोज़ यह बहार पंखुड़ियों की बंद ना हो जाए..यह खूबसूरत
सा फूल किसी और बगीचे मे ना खिल जाए..मौसम को पहले भी बदलते देखा है,कुछ लफ्ज़ो को खुद पे
भारी होते भी देखा है..फिर भी बहार तो बहार है,साँझ की है या फिर सवेरे की..मगर बहार तो है..