Saturday, 25 April 2020

कौन सा दिन किस बात का है...मौत से दूरी का या ज़िंदगी के करीब आने का...वल्लाह,दिन कैसा भी

हो मगर हर दिन है तो उस परवरदिगार का..सब से कहते आए है,कह रहे है...ज़िंदगी जीते-जी मर जीने

का नाम नहीं...यह वो गुलदस्ता है जिस मे हर सुबह और हर शाम,अपने अलग रंग मे ढली इक कहानी

इक नियामत है..हिम्मत छोड़ दी तो यू ही मर जाए गे..हिम्मत से जिए तो शायद ज़माने मे अपना कोई

नाम कर जाए गे...हंस ले पगले...मौत भी अपनी तो यह ज़िंदगी भी तो अपनी....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...