उड़ जाना सर से दुपट्टे का,रिश्ते को नया नाम दे गया...बंधन बंधा ऐसा कि रिश्ता नायाब होने लगा..
खुद से भी जयदा यकीन उस पे होने लगा...दुपट्टे की लाज रखने के लिए,बहती नदिया सी वो बहती
रही..पाकीज़गी होती है क्या यह एहसास जताती रही..मगर इस बात से थी बेखबर,कि कब से गहरा
सैलाब उस के पीछे बहता जा रहा था कभी..विश्वास की धज्जियां उड़ी और वो बिख़र के टूट गई..वो
धागे जो महीन तो थे मगर इबादत की इबादत से भी ऊँचे थे..भरोसा,यह शब्द उस के सीने मे दर्द बन
बहने लगा..वो भरोसा जो कभी रखा था पूजा की थाली मे,उस की आँखों से कहर बन रसने लगा...
खुद से भी जयदा यकीन उस पे होने लगा...दुपट्टे की लाज रखने के लिए,बहती नदिया सी वो बहती
रही..पाकीज़गी होती है क्या यह एहसास जताती रही..मगर इस बात से थी बेखबर,कि कब से गहरा
सैलाब उस के पीछे बहता जा रहा था कभी..विश्वास की धज्जियां उड़ी और वो बिख़र के टूट गई..वो
धागे जो महीन तो थे मगर इबादत की इबादत से भी ऊँचे थे..भरोसा,यह शब्द उस के सीने मे दर्द बन
बहने लगा..वो भरोसा जो कभी रखा था पूजा की थाली मे,उस की आँखों से कहर बन रसने लगा...