Monday 27 April 2020

दुआ ही तो है जो बेहद ख़ामोशी से भी करो तो क़बूल हो जाती है..उस को कोई भी बात कहने के लिए

कहां कोई शर्म होती है..जब जीवन ही उस का दिया और सांसे भी, तो इक दीपक मंदिर मे जलाने मे

तकलीफ क्यों होती है...काम बहुत है,यह कह कर हम अपनी ही तौहीन करते है..जिस ने दिया इतना

कुछ,उस के लिए यह जान लुटाने से क्यों तकलीफ होती है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...