ज़िद पे आ गए तो कुछ भी कर जाए गे...बर्बादी पे आ गए तो खुद को ही मिटा जाए गे...ऐसे है या फिर
वैसे है,अब क्या फर्क पड़ता है..नज़ारा हमारा देख फिर पछताना नहीं..हम तो धुन के पक्के है,यह तुम
को बताना जरुरी ही नहीं..आँखों से अब आंसू टपके या खून की बूंदे,कोई असर हम पर नहीं..जिल्लत
क्यों सही तेरी चुप्पी की,हम कोई खानाबदोश तो नहीं...कदम बढ़ा दिए आज से बर्बादी की तरफ,अब
अंजाम होगा क्या यह बताना जरुरी ही नहीं....
वैसे है,अब क्या फर्क पड़ता है..नज़ारा हमारा देख फिर पछताना नहीं..हम तो धुन के पक्के है,यह तुम
को बताना जरुरी ही नहीं..आँखों से अब आंसू टपके या खून की बूंदे,कोई असर हम पर नहीं..जिल्लत
क्यों सही तेरी चुप्पी की,हम कोई खानाबदोश तो नहीं...कदम बढ़ा दिए आज से बर्बादी की तरफ,अब
अंजाम होगा क्या यह बताना जरुरी ही नहीं....