Thursday 30 April 2020

प्रेम को खोज रहे है आज ग्रंथो मे...इस के हर रूप को ढूंढ रहे है इन ग्रंथो के हर पन्ने मे ...परिभाषा

परिशुद्ध प्रेम की ग़ल्त ना लिख बैठे,बार-बार खोजते है शब्द इन पाक पन्नो मे...हम विद्वान नहीं,बस

कुछ शब्दों के रचियता होते है कभी-कभी..कभी दर्द को तो कभी प्रेम की धारा को अपनी समझ से

उतार देते है इन पन्नो पे...इक छोटा सा ''सरगोशियां ग्रन्थ'' रचने की कोशिश मे,कुछ शब्द पाक ग्रंथो

से चुन लेते है..शायद किसी राधा-कृष्ण को ढूंढ पाए इस कलयुग मे,यह सोच कर प्रेम को उतारते

रहते है अपने इस ग्रन्थ के खाली पन्नो पे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...