ना जाने कब से जल की धारा की तरह बहते आए है...कितनी चट्टानों को राह मे छोड़ आए है..ठेस इस
दिल को ना लग जाए,धारा तेज़ बहुत तेज़ बहाते आए है..मगर दरियादिली इस जल-धारा की,सभी को
उन्ही के रहमों-करम पे बहुत पीछे छोड़ आए है..सफर बाकी है कितना,मंज़िल का रास्ता दूर है कितना..
यह जाने बगैर तेज़ बहुत तेज़ तलाश मे भागते आए है...पहचान अपनी कही भूल ना जाए,कुछ सोच कर
समंदर मे खुद को समाने चले आए है...
दिल को ना लग जाए,धारा तेज़ बहुत तेज़ बहाते आए है..मगर दरियादिली इस जल-धारा की,सभी को
उन्ही के रहमों-करम पे बहुत पीछे छोड़ आए है..सफर बाकी है कितना,मंज़िल का रास्ता दूर है कितना..
यह जाने बगैर तेज़ बहुत तेज़ तलाश मे भागते आए है...पहचान अपनी कही भूल ना जाए,कुछ सोच कर
समंदर मे खुद को समाने चले आए है...