Wednesday 22 April 2020

ना जाने कब से जल की धारा की तरह बहते आए है...कितनी चट्टानों को राह मे छोड़ आए है..ठेस इस

दिल को ना लग जाए,धारा तेज़ बहुत तेज़ बहाते आए है..मगर दरियादिली इस जल-धारा की,सभी को

उन्ही के रहमों-करम पे बहुत पीछे छोड़ आए है..सफर बाकी है कितना,मंज़िल का रास्ता दूर है कितना..

यह जाने बगैर तेज़ बहुत तेज़ तलाश मे भागते आए है...पहचान अपनी कही भूल ना जाए,कुछ सोच कर

समंदर मे खुद को समाने चले आए है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...