रात ठहरी नहीं,सुबह की रौशनी बन दिन मे तब्दील हो गई...सृष्टि की तमाम खूबसूरती क्यों अनजाने मे
हम सब को नाकबूल हो गई...इतना मिला कि झोली भर-भर गई...बस जरा सा दर्द मिला तो हिम्मत हम
सब की कैसे खत्म हो गई...क्या करे कुदरत,कभी-कभी इंसानो को आज़मा भी लिया करती है...जो उस
की दुनियां की खूबसूरती मे भी कमी-पेशी निकालता रहा और खुद को बदकिस्मत कहता रहा...तो फिर
आज उस के इतने से कहर से क्यों भयभीत हो गया...
हम सब को नाकबूल हो गई...इतना मिला कि झोली भर-भर गई...बस जरा सा दर्द मिला तो हिम्मत हम
सब की कैसे खत्म हो गई...क्या करे कुदरत,कभी-कभी इंसानो को आज़मा भी लिया करती है...जो उस
की दुनियां की खूबसूरती मे भी कमी-पेशी निकालता रहा और खुद को बदकिस्मत कहता रहा...तो फिर
आज उस के इतने से कहर से क्यों भयभीत हो गया...