यह किताब ''सरगोशियां'' की है..जहां हर रंग रचा हम ने..मुनासिब से भी जयदा मुनासिब लिखने का
जज़्बा भर दिया हम ने..कही बिखरा दर्द तो कही प्यार उभर सामने पन्नो पे निख़र आया..अब कौन सी
ताकत का है यह असर जो पन्नो को जरुरत से भी ज्यदा भरने पे हावी हो आया..हम ने तो सिर्फ कलम
पकड़ी,यह कलम कब कैसे क्या लिखती रही..समझ हम को भी कुछ ना आया...ना जाने क्यों यह कलम
थकती नहीं..कब तक लिखे गी,यह भी बताती नहीं..???
जज़्बा भर दिया हम ने..कही बिखरा दर्द तो कही प्यार उभर सामने पन्नो पे निख़र आया..अब कौन सी
ताकत का है यह असर जो पन्नो को जरुरत से भी ज्यदा भरने पे हावी हो आया..हम ने तो सिर्फ कलम
पकड़ी,यह कलम कब कैसे क्या लिखती रही..समझ हम को भी कुछ ना आया...ना जाने क्यों यह कलम
थकती नहीं..कब तक लिखे गी,यह भी बताती नहीं..???