Thursday 16 April 2020

घने बेहद घने बादलों से घिरे इस चाँद के क्या कहने...पुकारे तुझे कितना कि तेरे रंग है बड़े निराले...

क्या झूठ कहाँ हम ने कि तुझे खुद पे बहुत गुमान है..इतरा ना इतना कि मेरे बिना तू बेजान है...मेरी

आगोश मे ही बार-बार आना है तुझ को..मेरे बिना तेरा गुज़ारा ही कहाँ है..तुझे चांदनी की कसम,सदियों

तल्क़ तू भी कायम है और तेरी चांदनी भी..रहना तुझे भी आसमां मे है और मुझे सदियों तुझे ही निहारना

है..फिर यू बादलों मे छिप कर अपनी अहमियत ना जता..याद रख,चांदनी रूठी तो फिर तू रहे गा कही

का भी नहीं...चांदनी का ग़ुम होना तू सह पाए गा भी नहीं...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...