घने बेहद घने बादलों से घिरे इस चाँद के क्या कहने...पुकारे तुझे कितना कि तेरे रंग है बड़े निराले...
क्या झूठ कहाँ हम ने कि तुझे खुद पे बहुत गुमान है..इतरा ना इतना कि मेरे बिना तू बेजान है...मेरी
आगोश मे ही बार-बार आना है तुझ को..मेरे बिना तेरा गुज़ारा ही कहाँ है..तुझे चांदनी की कसम,सदियों
तल्क़ तू भी कायम है और तेरी चांदनी भी..रहना तुझे भी आसमां मे है और मुझे सदियों तुझे ही निहारना
है..फिर यू बादलों मे छिप कर अपनी अहमियत ना जता..याद रख,चांदनी रूठी तो फिर तू रहे गा कही
का भी नहीं...चांदनी का ग़ुम होना तू सह पाए गा भी नहीं...
क्या झूठ कहाँ हम ने कि तुझे खुद पे बहुत गुमान है..इतरा ना इतना कि मेरे बिना तू बेजान है...मेरी
आगोश मे ही बार-बार आना है तुझ को..मेरे बिना तेरा गुज़ारा ही कहाँ है..तुझे चांदनी की कसम,सदियों
तल्क़ तू भी कायम है और तेरी चांदनी भी..रहना तुझे भी आसमां मे है और मुझे सदियों तुझे ही निहारना
है..फिर यू बादलों मे छिप कर अपनी अहमियत ना जता..याद रख,चांदनी रूठी तो फिर तू रहे गा कही
का भी नहीं...चांदनी का ग़ुम होना तू सह पाए गा भी नहीं...